अपने अपमान और पराजय से महाराज द्रुपद काफी दुखी हुए और द्रोणाचार्य को नीचा दिखाने के लिए उपाय खोजने लगे। ऐसी ही काफी समय व्यतीत हो गया। एक बार वह कल्याणी नगर में स्थित ब्राह्मणों की बस्ती में पहुंचे। जहां उनकी मुलाकात दो ब्राह्मण भाइयों से हुई। राजा द्रुपद ने उनकी काफी सेवा की और गुरु द्रोणाचार्य की मौत का उपाय पूछा।
ब्राह्मण भाईयों ने उनको यज्ञ एक विशाल यज्ञ कर अग्निदेव को खुश करने को कहा। तब महाराज दु्रपद ने उनसे ही यह यज्ञ करने को कहा। वो दोनों भाई इसके लिए तैयार हो गए। यज्ञ सम्पन्न होने पर हवन कुण्ड से एक बालक की उत्पत्ति हुई। जो सम्पूर्ण अस्त्र और शस्त्र से सुज्जित था। जिसका नाम धृष्टद्युम्न रखा गया जो आगे चलकर गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु की वजह बना।
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