शनिवार, 9 सितंबर 2017

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ऐसे सेनापति जिन्होंने एक भी जंग नही हारी।

By: Successlocator On: सितंबर 09, 2017
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  • पेशवा बाजीराव प्रथम हिंदुस्तान में मराठा साम्राज्य का एक महान सेनापति था. उसने साल 1720 से लेकर अपनी मौत तक चौथे मराठा छत्रपति साहू के पेशवा (प्रधानमंत्री) के रूप में सेवा की. उन्होंने कभी एक जंग भी नहीं हारी अपने सैन्यकाल में. उनके शौर्य को सदैव जीवित रखने के लिए हम उसकी जीवनी आपको बताते हैं-


    अपनी सेना को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया:

    इतिहासकार बाजीराव पेशवा का पूरा नाम बाजीराव बल्लाल आयर थोराले बाजीराव भी बताते हैं. बाजीराव ने अपने सैन्य काल में मराठा साम्राज्य को चरम सीमा तक पहुंचाया था जो उसकी मौत के 20 साल बाद भी उसके पुत्र के शासन में बना रहा.
    कभी एक जंग भी नहीं हारे पेशवा:

    अपने 20 साल के छोटे सैन्यवृति में बाजीराव ने एक भी जंग नही हारी. एक अंग्रेज अफसर ने तो बाजीराव को हिंदुस्तान का सबसे बेहतरीन घुड़सवार सेना का सेनापति बताया है. वैसे बाजीराव मस्तानी फिल्म के जरिए बाजीराव के शौर्य के बारे में आपको काफी जानकारी मिली होगी.


    जीवन परिचय:

    बाजीराव का जन्म कोकनष्ठ चितपावन ब्राह्मण वंश के भट्ट परिवार में 18 अगस्त 1700 ईसवी को हुआ था. उसके पिता बालाजी विश्वनाथ, छत्रपति साहू के प्रथम पेशवा थे और मां का नाम राधाबाई था. बाजीराव के छोटे भाई का नाम चिमाजी अप्पा था. बाजीराव बचपन में ही अपने पिता के सैन्य अभियानों में उनके साथ जाते थे. जब साल 1720 में बाजीराव के पिता विश्वनाथ की मौत हो गई तब छत्रपति साहू ने 20 वर्षीय बाजीराव को पेशवा नियुक्त कर दिया. उसने हिन्दू साम्राज्य का भारत में प्रसार किया था.
    मराठा साम्राज्य को पूरे देश में फैलाना चाहता था:

    बाजीराव दिल्ली की दीवारों पर मराठा ध्वज लहराना चाहता था और मुगल साम्राज्य को समाप्त कर हिन्दू-पत-पदशाही साम्राज्य स्थापित करना चाहता था. कम उम्र में ही मिला पेशवा का पद मिलने के बाद निजामों के खिलाफ अभियान चलाया था. ऐसे ही और भी अभियान जैसे मालवा विजयी अभियान, बुंदेलखंड अभियान, गुजरात अभियान चलाया.


    मात्र 39 साल की आयु में मृत्यु:

    28 अप्रैल साल 1740 को अचानक बीमार हो जाने या शायद दिल का दौरा पड़ने से 39 वर्ष की उम्र में बाजीराव की मृत्यु हो गई. उस समय बाजीराव अपनी एक लाख सैनिकों की सेना के साथ इंदौर शहर के निकट खारगोन जिले में अपने कैंप में थे. बाजीराव का नर्मदा नदी के तट पर रावरखेड़ी नामक स्थान पर दाह संस्कार किया गया और इसी स्थान पर उनकी याद में एक छतरी का निर्माण भी किया गया.

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