शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

आप जानते हैं चीन की दीवार को किसने और क्यों बनवाया था?

By: Successlocator On: सितंबर 23, 2016
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  • चीन की दीवार नाम तो बहुत सुना है हो सकता है कई लोगों ने देखी भी हो...लेकिन इस दीवार को किसने और क्यों बनवाया था ये कितने लोगों का पता है। यही नहीं इस दीवार से जुड़े और भी रोचक तथ्य भी हैं।

    दुनिया की सबसे बड़ी दीवार जिसे Great Wall of China भी कहते हैं। यह अपनी बेजोड़ लंबाई की वजह से तो यह दुनिया भर में प्रसिद्ध है ही लेकिन इसके अलावा भी इस दीवार से जुड़ी बहुत सारी दिलचस्प कहानियां चाइना में खूूूब प्रचलित हैं। यहां पर बड़ी संख्या में निर्मित दुर्गम दर्रें भी बेमिसाल है। यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में शुमार इस ग्रेट वॉल को देखने के लिए हर साल बहुत बड़ी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं।

    किसने और क्यों बनवाई ये विशाल दीवार? 

    यह विशाल किलेनुमा दीवार मिट्टी और पत्थरों से बनी है, जिसे 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 16वीं शताब्दी तक चीन के विभिन्न शासकों के द्वारा बनवाया गया। इसे बनवाने के पीछे का मकसद उत्तरी हमलावरों से अपनी रक्षा करना था।
    इसकी विशालता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इसे अंतरिक्ष से भी इसे आसानी से देखा जा सकता है। यह दीवार 6400 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है, जिसका विस्तार पूर्व में शानहाइगुआन से पश्चिम में लोप नुर तक है और कुल लंबाई लगभग 4160 मील है। हालांकि हाल के सर्वेक्षण के अनुसार, यह दीवार अपनी सभी शाखाओं सहित 8,851.8 कि.मी. (5,500.3 मील) तक फैली है।

    8वीं शताब्दी में कुई, यान और जाहो राज्यों ने तीर एवं तलवारों के हमलों से बचने के लिए मिट्टी और कंकड के सांचे में दबा कर बनाई गई ईटों से दीवार का निर्माण किया गया। ईसा से 221 वर्ष पूर्व चीन किन (Qin) साम्राज्य के अनतर्गत आ गया। इस साम्राज्य ने सभी छोटे राज्यों को एक करके एक अखंड चीन की रचना की।
    इसके बाद किन साम्राज्य के शासकों ने सारी दीवारों को मिलाकर एक कर दिया जो चीन की उत्तरी सीमा बनी। 5वीं शताब्दी से बहुत बाद तक ढेरों दीवारें बनीं, जिन्हें मिलाकर चीन की दीवार कहा गया। 220-226 ई.पू. में चीन के प्रथम सम्राट किन शी हुआंग द्वारा बनवाई गई दीवार सभी दीवारों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध थी लेकिन अब इस दीवार के कुछ ही अवशेष बचे हैं। यह मिंग वंश द्वारा बनवाई हुई वर्तमान दीवार के सुदूर उत्तर में बनी थी।

    वहीं, कहा जाता है कि मिंग वंश की सुरक्षा के लिए यहां 10 लाख से ज्यादा लोग नियुक्त थे और इस महान दीवार के निर्माण परियोजना में लगभग 20 से 30 लाख लोगों ने अपना पूरा जीवन लगा दिया था। आज यह दीवार विश्व में चीन का नाम ऊंचा करती है और इसे युनेस्को द्वारा 1980 से विश्व धरोहर घोषित किया गया है।

    इससे जुड़ी कुछ और बातेें

    दुनियाभर में खासतौर पर चीन में बच्चों को यह पढ़ाया जाता रहा है कि धरती पर चीन की दीवार ही एकमात्र ऐसी मानवनिर्मित चीज है जो अंतरिक्ष में दिखाई देती है लेकिन सब ओर निराशा तब फैल गई जब अंतरिक्ष में गए चीन के पहले यात्री ने यह कहा कि उसे अंतरिक्ष से दीवार नहीं दिखी।
    यह निराशा तब दूर हुई जब सरकारी अखबार ने चीनी मूल के अमरीकी अंतरिक्ष यात्री द्वारा खींची तस्वीरों का प्रकाशन कर दिया।

    भले ही अंतरिक्ष में चाइना की दीवार दिखाई देती है लेकिन चीनी गर्व की इस महान दीवार का भाव लोगों में थोड़ा कम हो गया है क्योंकि मिस्र के पिरामिड और कई हवाई अड्डों को भी अंतरिक्ष से देखे जाने की बात सामने आई है।
    यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में शुमार चाइना वॉल की अब देख-रेख नहीं हो रही है, जिसके कारण इसके नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है। दीवार का एक बड़ा हिस्सा प्राकृतिक आपदा और मानवीय लापरवाही के चलते गायब हो चुका है।

    ग्रेट वॉल ऑफ चाइना के नाम से जानी जाने वाली यह दीवार अब अटूट संरचना नहीं रही। कई हिस्सों में बंटी यह दीवार 1962 किलोमीटर तक टूट चुकी है। इस ऐतिहासिक संरचना को टूरिस्ट ने भी काफी नुकसान पहुंचाया है। इतना ही नहीं आस-पास के गांव के लोग अपना मकान बनाने के लिए यूनेस्को के इस विश्व धरोहर स्थल से ईंटे तक चुरा रहे हैं और बेच रहे हैं, जिसे रोकने के लिए सरकार ने जुर्माना लगाया है।

    गुरुवार, 15 सितंबर 2016

    महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण को स्त्री बनकर करना पड़ा था इस योद्धा से विवाह

    By: Successlocator On: सितंबर 15, 2016
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  • भगवान श्रीकृष्ण जिन्हें कभी रणछोड़ तो कभी महाभारत का युद्ध करवाने वाले वाले कूटनीतिज्ञ के रूप में जाना जाता है. महाभारत में अर्जुन के सारथी रहे श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश के माध्यम से जीवन बारे में ऐसी कई बातें बताई है, जो आज भी सार्थक मानी जाती है. वहीं महाभारत की अनगिनत कहानियों और पात्रों के माध्यम से हमें जीवन के प्रति एक नजरिया भी मिलता है. महाभारत में ऐसी ही एक कहानी है अर्जुन पुत्र इरावन की. जिसने अपने पिता को विजय करवाने के लिए खुद की बलि दी थी. बलि देने से पहले उसकी अंतिम इच्छा थी कि वह मरने से पहले विवाह कर ले, लेकिन जिसकी मृत्यु निकट हो, भला उससे कौन-सी लड़की विवाह करना चाहेगी, इसलिए इस शादी के लिए कोई भी लड़की तैयार नहीं थी.


    इरावन ने इसलिए दी थी स्वंय की बलि
    महाभारत के प्रसंग में एक कहानी ये भी है कि पांडवों को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए एक राजकुमार की बलि मां काली के सामने देनी थी, लेकिन कोई भी राजकुमार इसके लिए तैयार नहीं था. अपने पिता और परिवार की दुविधा देखते हुए इरावन ने स्वंय की बलि दे दी थी.

    अंतिम इच्छा को भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार किया पूरा
    मृत्यु से पहले इरावन ने विवाह करने की अपनी अंतिम इच्छा जताई. किसी भी लड़की के द्वारा विवाह प्रस्ताव स्वीकार न करने के कारण सभी दुविधा में पड़ गए. तब पांचों पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण से कोई मार्ग निकालने के लिए कहा. तब कोई दूसरा विकल्प न देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप धारण कर लिया और इरावन की इच्छा पूरी करते हुए उनसे विवाह कर लिया. अपने पति इरावन की मृत्यु के बाद मोहिनी का रूप धारण किए श्रीकृष्ण ने एक विधवा के रूप में विलाप भी किया था.


    पौराणिक कहानियों के अनुसार माना जाता है कि श्रीकृष्ण के पुरूष होते हुए उन्हें स्त्री रूप धारण करना पड़ा,  इस वजह से वो किन्नर के रूप में माने गए. तब से इरावन किन्नरों के स्वामी भी माने जाते हैं और किन्नर उनसे विवाह  रचाते हैं

    मंगलवार, 13 सितंबर 2016

    जमीन का सीना चीरकर बाहर आ रहा है एक पौराणिक रहस्य

    By: Successlocator On: सितंबर 13, 2016
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  • इसे भी पढ़ें:प्राचीन भारत के विमान और जहाज

    जमीन की मिट्टी हटी तो उसमें से कुछ उभार महसूस किया गया. कोई नहीं समझ पा रहा था कि जमीन में से यह क्या निकल रहा है. जब स्थानीय लोग जमीन के भीतर उभर रही इन गतिविधियों के कारण को समझ नहीं सके तो उन्होंने पुरातत्व वैज्ञानिकों को बुलाया.
    जब पुरातत्व वैज्ञानिकों ने जमीन के नीचे खुदाई शुरू की तो उन्हें जो मिला वह उसे देखकर बिल्कुल हैरान रह गए. उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में स्थित ओछा की यह घटना बेहद हैरान कर देने वाली थी जहां की जमीन में पुरातत्व वैज्ञानिकों को महाभारत के दौर से जुड़े कुछ बेहद महत्वपूर्ण और प्राचीन अवशेष मिले. भारतीय पुरात्व वैज्ञानिकों के अनुसार ओछा की जमीन के अंदर दसवीं शताब्दी से संबंधित एक मंदिर मौजूद है जो किसी भी समय जमीन फाड़कर बाहर आ सकता है.
    उल्लेखनीय है कि ओछा की ग्राम पंचायत में श्रृंगी ऋषि का आश्रम स्थित है. पहले इस स्थान पर बहुत से टीले हुआ करते थे लेकिन अब यहां कोई टीला मौजूद नहीं है. बचे हुए एक टीले पर भी मंदिर निर्माण करवाने के लिए उसे समतल करवाया जाने का काम शुरू किया गया तो खुदाई के दौरान ही मजदूरों को एक नर कंकाल मिला और जब और भीतर तक इस स्थान को खोदा गया तो इसमें से कुछ मूर्तियां और मंदिर के बेहद प्राचीन अवशेष मिले. जब इस टीले को पूरी तरह समतल कर दिया गया तो इसमें से दीवार या फिर किसी इमारत की नींव जैसा कुछ हाथ आया.
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    इन सभी अवशेषों की जब अच्छी तरह पड़ताल की गई तो यह पाया गया कि यह सभी अवशेष किसी मंदिर के हैं. पुरातत्व वैज्ञानिकों ने इस बात पर अपनी सहमति दे दी की यह सभी अवशेष एक प्राचीन मंदिर के हैं, जिसे 10वीं या ग्यारहवीं शताब्दी में बनाया गया होगा.
    हालांकि अभी तक इन अवशेषों की आयु को पुख्ता तौर पर नहीं बताया जा सकता इसीलिए वैज्ञानिकों  का कहना है कि अध्ययन के बाद ही जमीन के भीतर मिले अवशेषों की आयु का पता चल पाएगा. उन्होंने अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि यह सभी अवशेष किसी खास शैली या संरचना के आधार पर बने हुए हैं.
    इस स्थान में से अभी तक कई प्राचीन मूर्तियां बाहर आ चुकी हैं और वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगर इस स्थान की खुदाई की जाए तो बहुत हद तक संभव है कि इस जमीन के भीतर मौजूद एक बेहद प्राचीन मंदिर हमें मिल सकता है.
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    सोमवार, 12 सितंबर 2016

    प्राचीन भारती नृत्य शैली से ही दुनियाभर की नृत्य शैलियां विकसित हुई है।

    By: Successlocator On: सितंबर 12, 2016
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  • भारत की नृत्य शैली : प्राचीन भारती नृत्य शैली से ही दुनियाभर की नृत्य शैलियां विकसित हुई है। भारतीय नृत्य मनोरंजन के लिए नहीं बना था। भारतीय नृत्य ध्यान की एक विधि के समान कार्य करता है। इससे योग भी जुड़ा हुआ है। सामवेद में संगीत और नृत्य का उल्लेख मिलता है। भारत की नृत्य शैली की धूम सिर्फ भारत ही में नहीं अपितु पूरे विश्व में आसानी से देखने को मिल जाती है।

    हड़प्पा सभ्यता में नृत्य करती हुई लड़की की मूर्ति पाई गई है, जिससे साबित होता है कि इस काल में ही नृत्यकला का विकास हो चुका था। भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नृत्यकला का सबसे प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसको पंचवेद भी कहा जाता है। इंद्र की साभ में नृत्य किया जाता था। शिव और पार्वती के नृत्य का वर्णन भी हमें पुराणों में मिलता है।


    नाट्यशास्त्र अनुसार भारत में कई तरह की नृत्य शैलियां विकसित हुई जैसे भरतनाट्यम, चिपुड़ी, ओडिसी, कत्थक, कथकली, यक्षगान, कृष्णअट्टम, मणिपुरी और मोहिनी अट्टम। इसके अलावा भारत में कई स्थानीय संस्कृति और आदिवासियों के क्षेत्र में अद्भुत नृत्य देखने को मिलता है जिसमें से राजस्थान के मशहूर कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को की नृत्य सूची में शामिल किया गया है।

    मुगल काल में भारतीय संगीत, वाद्य और नृत्य को इस्लामिक शैली में ढालने का प्रासास किया गया जिसके चलते उत्तर भारती संगीत, वाद्य और नृत्य में बदलाव हो गया।

    संगीत और वाद्ययंत्रों का अविष्कार भारत में

    By: Successlocator On: सितंबर 12, 2016
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  • भारतीय संगीत : संगीत और वाद्ययंत्रों का अविष्कार भारत में ही हुआ है। संगीत का सबसे प्राचीन ग्रंथ सामवेद है। हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है। हिन्दू धर्म मानता है कि ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है। आत्मा इस जगत का कारण है। चारों वेद, स्मृति, पुराण और गीता आदि धार्मिक ग्रंथों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को साधने के हजारोहजार उपाय बताए गए हैं। उन उपायों में से एक है संगीत। संगीत की कोई भाषा नहीं होती। संगीत आत्मा के सबसे ज्यादा नजदीक होता है। शब्दों में बंधा संगीत विकृत संगीत माना जाता है।

    जानिए भारतीय संगीत के बारे में


    प्राचीन परंपरा : भारत में संगीत की परंपरा अनादिकाल से ही रही है। हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है। विष्णु के पास शंख है तो शिव के पास डमरू, नारद मुनि और सरस्वती के पास वीणा है, तो भगवान श्रीकृष्ण के पास बांसुरी। खजुराहो के मंदिर हो या कोणार्क के मंदिर, प्राचीन मंदिरों की दीवारों में गंधर्वों की मूर्तियां आवेष्टित हैं। उन मूर्तियों में लगभग सभी तरह के वाद्य यंत्र को दर्शाया गया है। गंधर्वों और किन्नरों को संगीत का अच्छा जानकार माना जाता है।

    सामवेद उन वैदिक ऋचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। संगीत का सर्वप्रथम ग्रंथ चार वेदों में से एक सामवेद ही है। इसी के आधार पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा और बाद में संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखा गया। दुनियाभर के संगीत के ग्रंथ सामवेद से प्रेरित हैं।

    संगीत का विज्ञान : हिन्दू धर्म में संगीत मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन है। संगीत से हमारा मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांत और स्वस्थ हो सकता है। भारतीय ऋषियों ने ऐसी सैकड़ों ध्वनियों को खोजा, जो प्रकृति में पहले से ही विद्यमान है। उन ध्वनियों के आधार पर ही उन्होंने मंत्रों की रचना की, संस्कृत भाषा की रचना की और ध्यान में सहायक ध्यान ध्वनियों की रचना की। इसके अलावा उन्होंने ध्वनि विज्ञान को अच्छे से समझकर इसके माध्यम से शास्‍‍त्रों की रचना की और प्रकृति को संचालित करने वाली ध्वनियों की खोज भी की। आज का विज्ञान अभी भी संगीत और ध्वनियों के महत्व और प्रभाव की खोज में लगा हुआ है, लेकिन ऋषि-मु‍नियों से अच्छा कोई भी संगीत के रहस्य और उसके विज्ञान को नहीं जान सकता।

    प्राचीन भारतीय संगीत दो रूपों में प्रचलन में था-1. मार्गी और 2. देशी। मार्गी संगीत तो लुप्त हो गया लेकिन देशी संगीत बचा रहा जिसके मुख्यत: दो विभाजन हैं- 1. शास्त्रीय संगीत और 2. लोक संगीत।

    शास्त्रीय संगीत शास्त्रों पर आधारित और लोक संगीत काल और स्थान के अनुरूप प्रकृति के स्वच्छंद वातावरण में स्वाभाविक रूप से पलता हुआ विकसित होता रहा। हालांकि शास्त्रीय संगीत को विद्वानों और कलाकरों ने अपने-अपने तरीके से नियमबद्ध और परिवर्तित किया और इसकी कई प्रांतीय शैलियां विकसित होती चली गईं तो लोक संगीत भी अलग-अलग प्रांतों के हिसाब से अधिक समृद्ध होने लगा।

    बदलता संगीत : मुस्लिमों के शासनकाल में प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को अरबी और फारसी में ढालने के लिए आवश्यक और अनावश्यक और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन किए। उन्होंने उत्तर भारत की संगीत परंपरा का इस्लामीकरण करने का कार्य किया जिसके चलते नई शैलियां भी प्रचलन में आईं, जैसे खयाल व गजल आदि। बाद में सूफी आंदोलन ने भी भारतीय संगीत पर अपना प्रभाव जमाया। आगे चलकर देश के विभिन्न हिस्सों में कई नई पद्धतियों व घरानों का जन्म हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान पाश्चात्य संगीत से भी भारतीय संगीत का परिचय हुआ। इस दौर में हारमोनियम नामक वाद्य यंत्र प्रचलन में आया।

    दो संगीत पद्धतियां : इस तरह वर्तमान दौर में हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटकी संगीत प्रचलित है। हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मंदिरों में विकसित होता रहा।


    हिन्दुस्तानी संगीत : यह संगीत उत्तरी हिन्दुस्तान में- बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, जम्मू-कश्मीर तथा महाराष्ट्र प्रांतों में प्रचलित है।

    कर्नाटक संगीत :  यह संगीत दक्षिण भारत में तमिलनाडु, मैसूर, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश आदि दक्षिण के प्रदेशों में प्रचलित है।

    वाद्य यंत्र : मुस्लिम काल में नए वाद्य यंत्रों की भी रचना हुई, जैसे सरोद और सितार। दरअसल, ये वीणा के ही बदले हुए रूप हैं। इस तरह वीणा, बीन, मृदंग, ढोल, डमरू, घंटी, ताल, चांड, घटम्, पुंगी, डंका, तबला, शहनाई, सितार, सरोद, पखावज, संतूर आदि का आविष्कार भारत में ही हुआ है। भारत की आदिवासी जातियों के पास विचित्र प्रकार के वाद्य यंत्र मिल जाएंगे जिनसे निकलने वाली ध्वनियों को सुनकर आपके निकलने वाली ध्वनियों को सुनकर आपके दिलोदिमाग में मदहोशी छा जाएगी।

    उपरोक्त सभी तरह की संगीत पद्धतियों को छोड़कर आओ हम जानते हैं, हिन्दू धर्म के धर्म-कर्म और क्रियाकांड में उपयोग किए जाने वाले उन 10 प्रमुख वाद्य यंत्रों को जिनकी ध्वनियों को सुनकर जहां घर का वस्तु दोष मिटता है वहीं मन और मस्तिष्क भी शांत हो जाता है।

    प्राचीन भारत के विमान और जहाज

    By: Successlocator On: सितंबर 12, 2016
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  • प्राचीन भारत के विमान और जहाज : प्राचीन भारत में एक ओर जहां आसमान में विमान उड़ते थे वहीं नदियों में नाव और समुद्र में जहाज चलते थे। रामायण काल में भगवान राम एक नाव में सफर करके ही गंगा पार करते हैं तो वे दूसरी ओर उनके द्वारा पुष्पक विमान से ही अयोध्या लौटने का वर्णन मिलता हैं। दूसरी ओर संस्कृत और अन्य भाषाओं के ग्रंथों में इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं कि भारतीय लोग समुद्र में जहाज द्वारा अरब और अन्य देशों की यात्रा करते थे।

    अफगानिस्तान में मिला महाभारतकालीन विमान..!
    प्राचीन भारत में जहाज का आविष्कार कैसे हुआ...
    प्राचीन उड़नखटोले : हकीकत या कल्पना?
    खोज लिए रावण के हवाई अड्डे




    प्राचीन भारत के शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण और महाभारतकाल में विमान होते थे जिसके माध्यम से विशिष्टजन एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुगमता से यात्रा कर लेते थे। विष्णु, रावण, इंद्र, बालि आदि सहित कई देवी और देवताओं के अलावा मानवों के पास अपने खुद के विमान हुआ करते थे। विमान से यात्रा करने की कई कहानियां भारतीय ग्रंथों में भरी पड़ी हैं। यहीं नहीं, कई ऐसे ऋषि और मुनि भी थे, जो अंतरिक्ष में किसी दूसरे ग्रहों पर जाकर पुन: धरती पर लौट आते थे।

    वर्तमान समय में भारत की इस प्राचीन तकनीक और वैभव का खुलासा कोलकाता संस्कृत कॉलेज के संस्कृत प्रोफेसर दिलीप कुमार कांजीलाल ने 1979 में एंशियंट एस्ट्रोनट सोसाइटी (Ancient Astronaut Society) की म्युनिख (जर्मनी) में संपन्न छठी कांग्रेस के दौरान अपने एक शोध पत्र से किया। उन्होंने उड़ सकने वाले प्राचीन भारतीय विमानों के बारे में एक उद्बोधन दिया और पर्चा प्रस्तुत किया।

    अद्भुत मंदिर रचना

    By: Successlocator On: सितंबर 12, 2016
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  • अद्भुत मंदिर रचना : प्राचीन भारतीयों ने एक और जहां पिरामिडनुमा मंदिर बनाए तो दूसरी ओर स्तूपनुमा मंदिर बानकर दुनिया को चमत्कृत कर दिया। आज दुनियाभर के धर्म के प्रार्थना स्थल इसी शैली में बनते हैं। मिश्र के पिरामिडों के बाद हिन्दू मंदिरों को देखना सबसे अद्भुत माना जाता था। प्राचीनकाल के बाद मौर्य और गुप्त काल में मंदिरों को नए सिरे से बनाया गया और मध्यकाल में उनमें से अधिकतर मंदिरों का विध्वंस किया गया। माना जाता है कि किसी समय ताजमहल भी एक शिव मंदिर ही था। कुतुबमीनार विष्णु स्तंभ था। अयोध्या में महाभारतकाल का एक प्राचीन और भव्य मंदिर था जिसे तोड़ दिया गया।


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    मौर्य, गुप्त और विजयनगरम साम्राज्य के दौरान बने हिन्दू मंदिरों की स्थापत्य कला को देखकर हर कोई दांतों तले अंगुली दबाए बिना नहीं रह पाता। अजंता-एलोरा की गुफाएं हों या वहां का विष्णु मंदिर। कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या जगन्नाथ मंदिर या कंबोडिया के अंकोरवाट का मंदिर हो या थाईलैंड के मंदिर... उक्त मंदिरों से पता चलता है कि प्राचीनकाल में खासकर महाभारतकाल में किस तरह के मंदिर बने होंगे। समुद्र में डूबी कृष्ण की द्वारिका के अवशेषों की जांच से पता चलता है कि आज से 5,000 वर्ष पहले भी मंदिर और महल इतने भव्य होते थे जितने कि मध्यकाल में बनाए गए थे।
    hindu mandir
    रहस्यों से भरे मंदिर : ऐसे कई मंदिर हैं, जहां तहखानों में लाखों टन खजाना दबा हुआ है। उदाहरणार्थ केरल के श्रीपद्मनाभ स्वामी मंदिर के 7 तहखानों में लाखों टन सोना दबा हुआ है। उसके 6 तहखानों में से करीब 1 लाख करोड़ का खजाना तो निकाल लिया गया है, लेकिन 7वें तहखाने को खोलने पर राजपरिवार ने सुप्रीम कोर्ट से आदेश लेकर रोक लगा रखी है। आखिर ऐसा क्या है उस तहखाने में कि जिसे खोलने से वहां तबाही आने की आशंका जाहिर की जा रही है? कहते हैं उस तहखाने का दरवाजा किसी विशेष मंत्र से बंद है और वह उसी मंत्र से ही खुलेगा।

    वृंदावन का एक मंदिर अपने आप ही खुलता और बंद हो जाता है। कहते हैं कि निधिवन परिसर में स्थापित रंगमहल में भगवान कृष्ण रात में शयन करते हैं। रंगमहल में आज भी प्रसाद के तौर पर माखन-मिश्री रोजाना रखा जाता है। सोने के लिए पलंग भी लगाया जाता है। सुबह जब आप इन बिस्तरों को देखें, तो साफ पता चलेगा कि रात में यहां जरूर कोई सोया था और प्रसाद भी ग्रहण कर चुका है। इतना ही नहीं, अंधेरा होते ही इस मंदिर के दरवाजे अपने आप बंद हो जाते हैं इसलिए मंदिर के पुजारी अंधेरा होने से पहले ही मंदिर में पलंग और प्रसाद की व्यवस्था कर देते हैं।

    मान्यता के अनुसार यहां रात के समय कोई नहीं रहता है। इंसान छोड़िए, पशु-पक्षी भी नहीं। ऐसा बरसों से लोग देखते आए हैं, लेकिन रहस्य के पीछे का सच धार्मिक मान्यताओं के सामने छुप-सा गया है। यहां के लोगों का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस परिसर में रात में रुक जाता है तो वह तमाम सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

    फुटबॉल खेल का जन्म भी भारत में

    By: Successlocator On: सितंबर 12, 2016
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  • प्राचीन भारतीय खेलों की दुनिया में धूम : प्राचीन भारत बहुत ही समृद्ध और सभ्य देश था, जहां हर तरह के अत्याधुनिक हथियार थे, तो वहीं मानव के मनोरंजन के भरपूर साधन भी थे। एक ओर जहां शतरंज का आविष्कार भारत में हुआ वहीं फुटबॉल खेल का जन्म भी भारत में ही हुआ है। भगवान कृष्ण की गेंद यमुना में चली जाने का किस्सा बहुत चर्चित है तो दूसरी ओर भगवान राम के पतंग उड़ाने का उल्लेख भी मिलता है।


    विस्तार से जानिए प्राचीन भारत के टॉप 12 खेल जो भारत में जन्मे...


    कहने का तात्पर्य यह कि ऐसा कोई-सा खेल या मनोरंजन का साधन नहीं है जिसका आविष्कार भारत में न हुआ हो। भारत में प्राचीनकाल से ही ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया गया है। कला, विज्ञान, गणित और ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जिनमें भारतीय योगदान अनुपम है। आधुनिक युग के ऐसे बहुत से आविष्कार हैं, जो भारतीय शोधों के निष्कर्षों पर आधारित हैं।

    प्राचीन अस्त्र और शस्त्र

    By: Successlocator On: सितंबर 12, 2016
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  • प्राचीन अस्त्र और शस्त्र : ऐसा नहीं है कि मिसाइलों या परमाणु अस्त्र का आविष्कार आज ही हुआ है। रामायण काल में भी परमाणु अस्त्र छोड़ा गया था और महाभारत काल में भी। इसके अलावा ऐसे भी कई अस्त्र और शस्त्र थे जिनके बारे में जानकर आप आश्चर्य करेंगे। विज्ञान इस तरह के अस्त्र और शस्त्र बनाने में अभी सफल नहीं हुआ है। हालांकि लक्ष्य का भेदकर लौट आने वाले अस्त्र वह बना चुका है।


    प्राचीन अस्त्र-शस्त्रों के बारे में विस्तार से जानने के लिए आगे क्लिक करें... कैसे थे प्राचीन अस्त्र-शस्त्र और कौन से, जानिए...

    उदाहरण के तौर पर एरिक वॉन अपनी बेस्ट सेलर पुस्तक 'चैरियट्स ऑफ गॉड्स' में लिखते हैं, 'लगभग 5,000 वर्ष पुरानी महाभारत के तत्कालीन कालखंड में कोई योद्धा किसी ऐसे अस्त्र के बारे में कैसे जानता था जिसे चलाने से 12 साल तक उस धरती पर सूखा पड़ जाता, ऐसा कोई अस्त्र जो इतना शक्तिशाली हो कि वह माताओं के गर्भ में पलने वाले शिशु को भी मार सके? इसका अर्थ है कि ऐसा कुछ न कुछ तो था जिसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ाया गया अथवा लिपिबद्ध नहीं हुआ और गुम हो गया।'

    भारत में 'एलियंस' के उतरने के सात स्थान

    By: Successlocator On: सितंबर 12, 2016
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  • प्राचीन भारत के 11 रहस्य जानकर रह जाएंगे आप हैरान...  

    भारत में रहते थे एलियंस : प्राचीन अंतरिक्ष विज्ञान के संबंध में खोज करने वाले एरिक वॉन डेनिकन तो यही मानते हैं कि भारत में ऐसी कई जगहें हैं, जहां एलियंस रहते थे जिन्हें वे आकाश के देवता कहते हैं।


    भारत में 'एलियंस' के उतरने के सात स्थान, जानिए


    हाल ही में भारत के एक खोजी दल ने कुछ गुफाओं में ऐसे भित्तिचित्र देखे हैं, जो कई हजार वर्ष पुराने हैं। प्रागैतिहासिक शैलचित्रों के शोध में जुटी एक संस्था ने रायसेन के करीब 70 किलोमीटर दूर घने जंगलों के शैलचित्रों के आधार पर अनुमान जताया है कि प्रदेश के इस हिस्से में दूसरे ग्रहों के प्राणी 'एलियन' आए होंगे।

    प्राचीन सभ्यताएं और हिन्दू धर्म

    By: Successlocator On: सितंबर 12, 2016
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  • धर्म आधारित व्यवस्था : सैकड़ों हजार वर्ष पूर्व लोग कबीले, समुदाय, घुमंतू वनवासी आदि में रहकर जीवन-यापन करते थे और उनकी भिन्न-भिन्न विचारधाराएं थीं। उनके पास कोई स्पष्ट न तो शासन व्यवस्था थी और न ही कोई सामाजिक व्यवस्था। परिवार, संस्कार और धर्म की समझ तो बिलकुल नहीं थी। ऐसे में भारतीय हिमालयीन क्षेत्र में कुछ मुट्ठीभर लोग थे, जो इस संबंध में सोचते थे। उन्होंने ही वेद को सुना और उसे मानव समाज को सुनाया। जब कई मानव समूह 5,000 साल पहले ही घुमंतू वनवासी या जंगलवासी थे, भारतीय सिंधु घाटी में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना हो चुकी थी। उल्लेखनीय है कि प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज कबीले में नहीं रहा। वह एक वृहत्तर और विशेष समुदाय में ही रहा।

    धर्म और सभ्यता का आविष्कारक देश भारत : दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं से हिन्दू धर्म का क्या कनेक्शन था? या कि संपूर्ण धरती पर हिन्दू वैदिक धर्म ने ही लोगों को सभ्य बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में धार्मिक विचारधारा की नए-नए रूप में स्थापना की थी? आज दुनियाभर की धार्मिक संस्कृति और समाज में हिन्दू धर्म की झलक देखी जा सकती है चाहे वह यहूदी धर्म हो, पारसी धर्म हो या ईसाई-इस्लाम धर्म हो।


    विश्‍व की प्राचीन सभ्यताएं और हिन्दू धर्म, जानिए रहस्य...

    ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबिलोनिया, 2000-250 ईसा पूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं विद्यमान थीं। उक्त सभी से पूर्व महाभारत का युद्ध लड़ा गया था इसका मतलब कि 3500 ईसा पूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी।

    भारत का 'धर्म' ‍दुनियाभर में अलग-अलग नामों से प्रचलित था। अरब और अफ्रीका में जहां सामी, सबाईन, ‍मुशरिक, यजीदी, अश्शूर, तुर्क, हित्ती, कुर्द, पैगन आदि इस धर्म के मानने वाले समाज थे तो रोम, रूस, चीन व यूनान के प्राचीन समाज के लोग सभी किसी न किसी रूप में हिन्दू धर्म का पालन करते थे। ईसाई और बाद में इस्लाम के उत्थान काल में ये सभी समाज हाशिए पर धकेल दिए गए।

    'मैक्सिको' शब्द संस्कृत के 'मक्षिका' शब्द से आता है और मैक्सिको में ऐसे हजारों प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है। जीसस क्राइस्ट्स से बहुत पहले वहां पर हिन्दू धर्म प्रचलित था- कोलंबस तो बहुत बाद में आया। सच तो यह है कि अमेरिका, विशेषकर दक्षिण-अमेरिका एक ऐसे महाद्वीप का हिस्सा था जिसमें अफ्रीका भी सम्मिलित था। भारत ठीक मध्य में था।

    अफ्रीका में 6,000 वर्ष पुराना एक शिव मंदिर पाया गया और चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, लाओस, जापान में हजारों वर्ष पुरानी विष्णु, राम और हनुमान की प्रतिमाएं मिलना इस बात के सबूत हैं कि हिन्दू धर्म संपूर्ण धरती पर था।

    सिन्धु-सरस्वती घाटी की सभ्यता का रहस्य जानिए...

    By: Successlocator On: सितंबर 12, 2016
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  • दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता सिंधु-सरस्वती : प्राचीन दुनिया में कुछ नदियां प्रमुख नदियां थीं जिनमें एक ओर सिंधु-सरस्वती और गंगा और नर्मदा थीं, तो दूसरी ओर दजला-फरात और नील नदियां थीं। दुनिया की प्रारंभिक मानव आबादी इन नदियों के पास ही बसी थीं जिसमें सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे बसी सभ्यता सबसे समृद्ध, सभ्य और बुद्धिमान थी। इसके कई प्रमाण मौजूद हैं। दुनिया का पहला धार्मिक ग्रंथ सरस्वती नदी के किनारे बैठकर ही लिखा गया था।

    क्या सचमुच भारत में बहती थी सरस्वती नदी?


    सिन्धु-सरस्वती घाटी की सभ्यता का रहस्य जानिए...


    एक और जहां दजला और फरात नदी के किनारे मोसोपोटामिया, सुमेरियन, असीरिया और बेबीलोन सभ्यता का विकास हुआ तो दूसरी ओर मिस्र की सभ्यता का विकास 3400 ईसा पूर्व नील नदी के किनारे हुआ। इसी तरह भारत में एक ओर सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे सिंधु, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि सभ्यताओं का विकास हुआ तो दूसरी ओर गंगा और नर्मदा के किनारे प्राचीन भारत का समाज निर्मित हुआ।

    प्राप्त शोधानुसार सिंधु और सरस्वती नदी के बीच जो सभ्यता बसी थी वह दुनिया की सबसे प्राचीन और समृद्ध सभ्यता थी। यह वर्तमान में अफगानिस्तान से भारत तक फैली थी। प्राचीनकाल में जितनी विशाल नदी सिंधु थी उससे कई ज्यादा विशाल नदी सरस्वती थी।

    शोधानुसार यह सभ्यता लगभग 9,000 ईसा पूर्व अस्तित्व में आई थी और 3,000 ईसापूर्व उसने स्वर्ण युग देखा और लगभग 1800 ईसा पूर्व आते-आते यह लुप्त हो गया। कहा जाता है कि 1,800 ईसा पूर्व के आसपास किसी भयानक प्राकृतिक आपदा के कारण एक और जहां सरस्वती नदी लुप्त हो गई वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र के लोगों ने पश्‍चिम की ओर पलायन कर दिया। पुरात्ववेत्ता मेसोपोटामिया (5000- 300 ईसापूर्व) को सबसे प्राचीन बताते हैं, लेकिन अभी सरस्वती सभ्यता पर शोध किए जाने की आवश्यकता है।

    संस्कृत भाषा और ब्राह्मी लिपि

    By: Successlocator On: सितंबर 12, 2016
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  • प्राचीन भारत के 11 रहस्य जानकर रह जाएंगे आप हैरान...
    अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'|    

    संस्कृत भाषा और ब्राह्मी लिपि : संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। 'संस्कृत' का शाब्दिक अर्थ है 'परिपूर्ण भाषा'। संस्कृत से पहले दुनिया छोटी-छोटी, टूटी-फूटी बोलियों में बंटी थी जिनका कोई व्याकरण नहीं था और जिनका कोई भाषा कोष भी नहीं था। कुछ बोलियों ने संस्कृत को देखकर खुद को विकसित किया और वे भी एक भाषा बन गईं।

    सभी भाषाओं की जननी संस्कृत


    ब्राह्मी और देवनागरी लिपि : भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ। भारत से इसे सुमेरियन, बेबीलोनीयन और यूनानी लोगों ने सीखा। प्राचीनकाल में ब्राह्मी और देवनागरी लिपि का प्रचलन था। ब्राह्मी और देवनागरी लिपियों से ही दुनियाभर की अन्य लिपियों का जन्म हुआ। ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन लिपि है जिससे कई एशियाई लिपियों का विकास हुआ है। महान सम्राट अशोक ने ब्राह्मी लिपि को धम्मलिपि नाम दिया था। ब्राह्मी लिपि को देवनागरी लिपि से भी प्राचीन माना जाता है। कहा जाता है कि यह प्राचीन सिन्धु-सरस्वती लिपि से निकली लिपि है। हड़प्पा संस्कृति के लोग इस लिपि का इस्तेमाल करते थे, तब संस्कृत भाषा को भी इसी लिपि में लिखा जाता था।

    शोधकर्ताओं के अनुसार देवनागरी, बांग्ला लिपि, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, तमिल लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, बर्मेली, लाओ, खमेर, जावानीज, खुदाबादी लिपि, यूनानी लिपि आदि सभी लिपियों की जननी है ब्राह्मी लिपि।

    कहते हैं कि चीनी लिपि 5,000 वर्षों से ज्यादा प्राचीन है। मेसोपोटामिया में 4,000 वर्ष पूर्व क्यूनीफॉर्म लिपि प्रचलित थी। इसी तरह भारतीय लिपि ब्राह्मी के बारे में भी कहा जाता है। जैन पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि सभ्यता को मानवता तक लाने वाले पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की एक बेटी थी जिसका नाम ब्राह्मी था और कहा जाता है कि उसी ने लेखन की खोज की। यही कारण है कि उसे ज्ञान की देवी सरस्वती के साथ जोड़ते हैं। हिन्दू धर्म में सरस्वती को शारदा भी कहा जाता है, जो ब्राह्मी से उद्भूत उस लिपि से संबंधित है, जो करीब 1500 वर्ष से अधिक पुरानी है।

    केरल के एर्नाकुलम जिले में कलादी के समीप कोट्टानम थोडू के आसपास के इलाकों से मिली कुछ कलात्मक वस्तुओं पर ब्राह्मी लिपि खुदी हुई पाई गई है, जो नवपाषाणकालीन है। यह खोज इलाके में महापाषाण और नवपाषाण संस्कृति के अस्तित्व पर प्रकाश डालती है। पत्थर से बनी इन वस्तुओं का अध्ययन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वैज्ञानिक और केरल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पुरातत्वविद डॉ. पी. राजेन्द्रन द्वारा किया गया। ये वस्तुएं एर्नाकुलम जिले में मेक्कालादी के अंदेथ अली के संग्रह का हिस्सा हैं। राजेन्द्रन ने बताया कि मैंने कलादी में कोट्टायन के आसपास से अली द्वारा संग्रहीत कलात्मक वस्तुओं के विशाल भंडार का अध्ययन किया। इन वस्तुओं में नवपाषणकालीन और महापाषाणकालीन से संबंधित वस्तुएं भी हैं। उन्होंने बताया कि नवपाषाणकलीन कुल्हाड़ियों का अध्ययन करने के बाद पाया गया कि ऐसी 18 कुल्हाड़ियों में से 3 पर गुदी हुई लिपि ब्राह्मी लिपि है। 

    रविवार, 11 सितंबर 2016

    प्रथम जीव और मानव की जन्मस्थली

    By: Successlocator On: सितंबर 11, 2016
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    प्रथम जीव और मानव की जन्मस्थली : कुछ विद्वान मानते हैं कि जब अफ्रीका, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया एक थे तब भारत के एक हिस्से मात्र में डायनासोरों का राज था। लेकिन 50 करोड़ वर्ष पूर्व वह युग ‍बीत गया। प्रथम जीव की उत्पत्ति धरती के पेंजिया भूखंड के काल में गोंडवाना भूमि पर हुई थी। गोंडवाना महाद्वीप एक ऐतिहासिक महाद्वीप था। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग 50 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर दो महा-महाद्वीप ही थे। उक्त दो महाद्वीपों को वैज्ञानिकों ने दो नाम दिए। एक का नाम था 'गोंडवाना लैंड' और दूसरे का नाम 'लॉरेशिया लैंड'। गोंडवाना लैंड दक्षिण गोलार्ध में था और उसके टूटने से अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका महाद्वीप का निर्माण हुआ। गोंडवाना लैंड के कुछ हिस्से लॉरेशिया के कुछ हिस्सों से जुड़ गए जिनमें अरब प्रायद्वीप और भारतीय उपमहाद्वीप हैं। गोंडवाना लैंड का नाम भारत के गोंडवाना प्रदेश के नाम पर रखा गया है, क्योंकि यहां शुरुआती जीवन के प्रमाण मिले हैं। फिर 13 करोड़ साल पहले जब यह धरती 5 द्वीपों वाली बन गई, तब जीव-जगत का विस्तार हुआ। उसी विस्तार क्रम में आगे चलकर कुछ लाख वर्ष पूर्व मानव की उत्पत्ति हुई।

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    धरती का पहला मानव कौन था?

    जीवन का विकास सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ, जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है। यहां डायनासोरों के सबसे प्राचीन अंडे एवं जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। भारत के सबसे पुरातन आदिवासी गोंडवाना प्रदेश के गोंड संप्रदाय की पुराकथाओं में भी यही तथ्य वर्णित है। गोंडवाना मध्यभारत का ऐतिहासिक क्षेत्र है जिसमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र राज्य के हिस्से शामिल हैं। गोंड नाम की जाति आर्य धर्म की प्राचीन जातियों में से एक है, जो द्रविड़ समूह से आती है। उल्लेखनीय है कि आर्य नाम की कोई जाति नहीं होती थी। जो भी जाति आर्य धर्म का पालन करती थी उसे आर्य कहा जाता था।

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    पहला मानव : प्राचीन भारत के इतिहास के अनुसार मानव कई बार बना और कई बार फना हो गया। एक मन्वंतर के काल तक मानव सभ्यता जीवित रहती है और फिर वह काल बीत जाने पर संपूर्ण धरती अपनी प्रारंभिक अवस्था में पहुंच जाती है। लेकिन यह तो हुई धर्म की बात इसमें सत्य और तथ्य कितना है?

    दुनिया व भारत के सभी ग्रंथ यही मानते हैं कि मानव की उत्पत्ति भारत में हुई थी। हालांकि भारतीय ग्रंथों में मानव की उत्पत्ति के दो सिद्धांत मिलते हैं- पहला मानव को ब्रह्मा ने बनाया था और दूसरा मनुष्य का जन्म क्रमविकास का परिणाम है। प्राचीनकाल में मनुष्य आज के मनुष्य जैसा नहीं था। जलवायु परिवर्तन के चलते उसमें भी बदलाव होते गए।

    हालांकि ग्रंथ कहते हैं कि इस मन्वंतर के पहले मानव की उत्पत्ति वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर हुई थी। यह नदी कश्मीर में है। वेद के अनुसार प्रजापतियों के पुत्रों से ही धरती पर मानव की आबादी हुई। आज धरती पर जितने भी मनुष्य हैं सभी प्रजापतियों की संतानें हैं।

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